“धरती आबा” बिरसा मुंडा जी की जयंती
🙏 जय झारखंड
15 नवंबर को मनाई जाने वाली भगवान बिरसा मुंडा की जयंती पूरे भारत में जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाई जाती है। धरती आबा के नाम से विख्यात बिरसा मुंडा का जन्म एक साधारण आदिवासी परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम सुगना मुंडा और माता का नाम करमी मुंडा था।
आदिवासी अधिकारों के लिए संघर्ष: बिरसा मुंडा ने अपने जीवन का समर्पण आदिवासी समाज के उत्थान और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए किया। उन्होंने “जल, जंगल और जमीन” के नारे के साथ आदिवासियों को उनके प्राकृतिक अधिकारों के लिए जागृत किया। 1895 में उन्होंने अंग्रेजों की अन्यायपूर्ण जमींदारी प्रथा और वन कानूनों के खिलाफ आवाज उठाई।
उलगुलान आंदोलन: बिरसा मुंडा ने ‘उलगुलान’ (महान हलचल) आंदोलन का नेतृत्व किया। यह आंदोलन केवल राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए नहीं, बल्कि आदिवासी संस्कृति और पहचान की रक्षा के लिए भी था। उन्होंने आदिवासी समाज को तीन स्तरों – सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक – पर संगठित किया।
गिरफ्तारी और शहादत: 1894 में शुरू किए गए आंदोलन के कारण उन्हें 1895 में हजारीबाग जेल में दो साल की सजा हुई। बाद में 3 फरवरी 1900 को चक्रधरपुर के जमकोपाई जंगल से उन्हें पुनः गिरफ्तार किया गया। 9 जून 1900 को मात्र 25 वर्ष की आयु में रांची जेल में उनकी रहस्यमय मृत्यु हो गई। हालांकि ब्रिटिश सरकार ने हैजा को मृत्यु का कारण बताया, लेकिन उनमें बीमारी के कोई लक्षण नहीं थे।
वंशावली और विरासत: बिरसा मुंडा की वंशावली में सबसे पहला नाम लकरी मुंडा का आता है। उनके वंश का विस्तार उनके भाई कानु मुंडा से हुआ, क्योंकि बिरसा के कोई संतान नहीं थी। आज भी उलिहातू में उनकी पांचवीं पीढ़ी निवास करती है।
भगवान बिरसा मुंडा की वीरगाथा आज भी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और आदिवासी अधिकारों के लिए संघर्ष का एक प्रेरणादायक अध्याय है। उनका बलिदान युगों-युगों तक देशवासियों को प्रेरित करता रहेगा।