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योगयुक्तो विशुद्धात्मा विजितात्मा जितेन्द्रियः । सर्वभूतात्मभूतात्मा कुर्वन्नपि न लिप्यते ।।

जो भक्तिभाव से कर्म करता है, जो विशुद्ध आत्मा है और अपने मन तथा, इन्द्रियों को वश में रखता है,
वह सभी को प्रिय होता है और सभी लोग उसे प्रिय होते हैं। ऐसा व्यक्ति कर्म करता हुआ भी उससे लिप्त नहीं होता है ।

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