
Fourth Day: 25 September
Maa Kushmanda
माँ कूष्मांडा: नवरात्रि की अष्टमी स्वरूपा
नवरात्रि के चौथे दिन माँ दुर्गा के चतुर्थ स्वरूप माँ कूष्मांडा की पूजा की जाती है। इन्हें ब्रह्माण्ड की सृजक कहा जाता है, क्योंकि अपने दिव्य और मधुर मुस्कान से इन्होंने शून्य ब्रह्माण्ड की रचना की थी। इसी कारण इनका नाम “कूष्मांडा” पड़ा, जिसका अर्थ है—”कू (थोड़ा), उष्मा (ऊर्जा), अंड (ब्रह्माण्ड)” यानी ब्रह्माण्ड की सृजक। माँ कूष्मांडा का निवास स्थान सूर्य मण्डल माना जाता है और उनकी शक्ति से ही सूर्य देव को प्रकाश और ऊर्जा प्राप्त होती है।
माँ कूष्मांडा को अष्टभुजा धारी देवी के रूप में वर्णित किया गया है। उनके आठों हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमल, अमृतकलश, जपमाला, गदा और चक्र सुशोभित रहते हैं। माँ सिंह की सवारी करती हैं और भक्तों को असीम शक्ति, बुद्धि और दीर्घायु का आशीर्वाद देती हैं।
माँ कूष्मांडा की उपासना करने से रोग, शोक और भय दूर होते हैं। माना जाता है कि उनकी कृपा से साधक के जीवन में नई ऊर्जा, समृद्धि और सुख-शांति का वास होता है। जो साधक श्रद्धापूर्वक उनका ध्यान करता है, उसे आध्यात्मिक उन्नति और अपार तेज की प्राप्ति होती है।