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श्री लंका की अशोक वाटिका के बारे में अपने रामायण में सुना होगा। अशोक वाटिका ऐतिहासिक परी तत्वों से अद्भुत है। उसे एलिया पर्वतीय क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है जहां मां सीता को रखा गया था हालाँकि उस वाटिका में अभी एक ही वृक्ष पर्याप्त है जहाँ मां सीता को बैठने की जगह दी गई थी। आज उस जगह पर मंदिर बनाया गया है ताकि मां सीता के बैठने की जगह पर किसी के पैर न पड़े। इस वाटिका की खूबसूरती आज भी कायम है। यहाँ के पेड़ पौधे, मंदिर सब कुछ इतना प्यारा है कि यहाँ से निकलने का मन ही नहीं होता है किसी का। इस वाटिका को देखने के लिए दूर दूर से लोग आते है।

क्यों अशोक वाटिका के मिट्टी का रंग काला है?

अशोक वाटिका के अंदर अलग-अलग जगह में अलग-अलग दो मिट्टी मौजूद है एक सामान्य भूरे रंग की, और दूसरी काली रंग की। काली मिटटी के पीछे भी एक कथा छुपी है, कहा जाता है की जब हनुमान लंका पहुंचे थे माँ सीता का पता लगाने के लिए तब मेघनाथ ने बंदी बना कर उनकी पूंछ में आग लगा दी थी। हनुमान के पूंछ में आग लगने के बाद उन्होंने अपने पूंछ से अशोक वाटिका और विभीषण का घर छोड़ कर पुरे लंका में आग लगा दी थी। जिस कारण अशोक वाटिका को छोड़ कर बाकी सभी जगह की मिट्टी काली दिखाई देती है। वहां के पुजारी बताते हैं कि राम लक्ष्मण और हनुमान की मूर्तियां 5000 साल पुरानी है जो वहां स्थापित है। सीता वाटिका में हनुमान का पद चिन्ह आज भी मौजूद है। बताया जाता है की जब हनुमान सीता को खोजते खोजते पहली बार वाटिका में आए थे तो उनका पहला कदम जिस जगह पर पड़ा था वह बड़ा सा गड्ढा बना हुआ है। यह वाटिका इतनी खुबसूरत है की जब श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं तो उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहता। अशोक वाटिका के मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही एक अजीब अनुभूति का एहसास होता है। श्रीलंका सरकार ने अशोक वाटिका को अब नया दर्शनीय स्वरूप दे दिया है। अशोक वाटिका में राम-सीता का भव्य मंदिर है। जिसकी खूबसूरती देखते ही बनती है।

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